क्या देखते हो खुद को
ख़्वाब में दौड़ता हुआ,
या देखते हो भूकंप में
खुद को रेंगता हुआ?
या कभी
हवा से तेज़ उड़ने लगते हो,
या आसमाँ से
कभी गिरने लगते हो?
क्या डर कर उठ जाते हो?
या आगे देखने के लिए
और सो जाते हो?
क्या ख़्वाब देखते हो?
चले गए जो लोग,
क्या उनसे मिल लेते हो?
कुछ सवाल उनसे पूछ,
कुछ जवाब उनको देते हो?
क्या उनसे मिल कर,
ख़्वाब हक़ीक़त लगने लगता है,
या आंखे खोल कर कभी
हक़ीक़त भी ख़्वाब सा दिखता है?
क्या कभी ख़्वाब और हक़ीक़त का
फर्क़ भूल जाते हो?
क्या ख़्वाब में जीने के लिए
और सो जाते हो?
क्या ख़्वाब देखते हो?
कभी डरावने सपने से जाग कर
खुश हो जाते हो,
कि ख़्वाब ही तो था,
या खूबसूरत सपनों के टूटने पर,
अफसोस मनाते हो,
कि ख़्वाब क्यूं था?
कभी इतने गहरे ख़्वाब देखते हो,
कि याद ही ना आए,
या इतने मौलिक,
कि रात दिन तड़पायें |
क्या ख़्वाबों में कभी,
जीने लग जाते हो?
या ख़्वाबों में जीने के लिए,
सोना चाहते हो?
क्या ख़्वाब देखते हो?
क्या अधूरे ख़्वाब को, वापस सो कर,
पूरा कर लेते हो?
या पूरे ख़्वाबों से जाग कर,
ख़ुद को अधूरा महसूस करते हो?
क्या ख़्वाब देखने से डर जाते हो?
या उनके पूरे होने से हिचकिचाते हो?
क्या कुछ ख़्वाबों को समझ भी पाते हो?
या उनकी समझ में और उलझ जाते हो?
क्या ख़्वाब देखने की
हिम्मत कर पाते हो?
क्या ख़्वाब देखते हो?
- अभिनव शर्मा "दीप"
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