हैं सवाल बस, बिना जवाब के,
कब आते हैं, कब जाते हैं,
दिन-रात कभी, बस सताते हैं,
कभी सोते से जगाते हैं,
कभी नींद उड़ा ले जाते हैं |
हैं सवाल बस, बिना जवाब के |
ज़ंजीरो से जकड़े हैं,
ज़िंदा लाशों से गड़े हैं,
कभी बारिश की बूंदों सा,
बरस पड़ते हैं,
कभी तूफानी हवा सा,
बिगड़ने लगते हैं |
हैं सवाल बस, बिना जवाब के |
कैसे बंद कमरों में,
आ जाते हैं,
कभी खुले आसमान सा,
पीछे पड़ जाते हैं,
कभी चांदनी का सहारा ले,
या अमावस का अँधियारा ले,
बिना पूछे, बिना बताए,
बस, सवार हो जाते हैं |
हैं सवाल बस, बिना जवाब के |
सन्नाटों सा चीखने लगते हैं,
शोर से सुनसान हो जाते हैं,
कभी कुछ बताते हैं,
कभी बिना पूछे ही,
चले जाते हैं,
कभी फिर वापस आ कर,
ठहर ही जाते हैं |
हैं सवाल बस, बिना जवाब के |
कभी हर लफ़्ज़ मे,
सुनायी देते हैं,
कभी हर झलक मे,
दिखाई देते हैं,
आ जाते हैं, खेल जाने के लिए,
या शायद, तड़पाने के लिए,
या बस इतना जताने के लिए, कि,
हैं सवाल बस, बिना जवाब के |
शायद ये ज़हन की आग हैं,
या रूह पर दाग है,
जो बुझाते ना बुझ पाते हैं,
ना मिटते, ना मिटाते हैं,
शायद ये मेरा चेहरा हैं,
बिना नक़ाब के,
हैं सवाल बस, बिना जवाब के |
-अभिनव शर्मा "दीप"
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