metaphor for corruption.
Feel these words from the youth
of the nation, who is tired of this
heat, and wants to end it, even if
it costs him his life.
इतनी गर्मी सह नहीं पा रहे, चलो बारिश ले आते हैं,
इस सूखी धरा को, चलो थोड़ा भिगाते हैं |
कहाँ सोये हैं ईमान के बादल, या फिर ये खो गए,
ढूंढते हैं इनको, चलो इनको जगाते हैं |
गब़न की आग ऐसी लगे, कि सब झुलस जाए,
चलो इस आग को, लगने से पहले बुझाते हैं |
यह डूब रही है दुनिया, चलो इसको बचाते हैं,
गोते खा कर ही सही, आज तैरना सीख जाते हैं |
-अभिनव शर्मा "दीप"
of the nation, who is tired of this
heat, and wants to end it, even if
it costs him his life.
इतनी गर्मी सह नहीं पा रहे, चलो बारिश ले आते हैं,
इस सूखी धरा को, चलो थोड़ा भिगाते हैं |
कहाँ सोये हैं ईमान के बादल, या फिर ये खो गए,
ढूंढते हैं इनको, चलो इनको जगाते हैं |
गब़न की आग ऐसी लगे, कि सब झुलस जाए,
चलो इस आग को, लगने से पहले बुझाते हैं |
यह डूब रही है दुनिया, चलो इसको बचाते हैं,
गोते खा कर ही सही, आज तैरना सीख जाते हैं |
-अभिनव शर्मा "दीप"
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