हैं आसमाँ मे बादल क्यूँ,
क्या बारिश आएगी?
या बूंदों की तरस मे,
ज़िंदगी बीत जाएगी |
क्या इन् खेतों में,
फिर हरियाली छाएगी?
या सूखते हुए मिट्टी के साथ,
जड़ भी सूख जाएगी |
कभी बारिश का पानी,
यहां भी बरसा था,
प्यार की बाढ़ में,
ये गांव भी डूबा था |
पर आज सूखे इस भू पर,
क्या खुशहाली छाएगी?
या प्यार के एहसास से,
यह रूखी रह जाएगी |
कभी पेड़ों की हरियाली मे,
चिड़ियों का बसेरा था,
कभी हर रात के बाद,
नया एक सवेरा था |
पर क्या वैसी रोशनी,
फिर से आएगी ?
या अंधेरे से घिरे दिनों मे,
ज़िंदगी बीत जाएगी |
बंजर पड़ी है ज़मीन,
अब कहाँ फूल खिलेंगे,
पत्थर भरी इस राह पर,
बस अब कांटे ही मिलेंगे |
पत्थर हो जाएगी रूह,
अब क्या यह महसूस कर पाएगी?
कांटों का चुभना भी,
शायद, बता नहीं पाएगी |
-अभिनव शर्मा "दीप"
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