Jaane kyun aaya tu?
Ye janm kyun paya tu?
Aa ke haasil kya kiya?
Saath kya laya tu?
Jeeta din gin gin tu,
marta hai har din yun,
ban kar aag ka shola,
yun khud ko jalaya kyun?
Ye janm kyun paaya tu?
Na kuch mila, na kuch payega,
apni he aag main jhulas jayega.
Jala kar khud ko khud se he,
hai raakh ban aaya tu.
Ye janm kyun paya tu?
-Abhinava Sharma "Deep"
Sunday, December 2, 2018
Wednesday, November 28, 2018
तू खोखला है या ख़ाली है ?
और आंखों में कैसी लाली है ?
क्यूँ ख़ुद से उदास है ?
क्यूँ बनता ख़ुद पर गाली है ?
तू है ज़िंदा या मर गया ?
या जीने से पहले गुज़र गया ?
बस एक मंज़र के ना मिलने पर ,
तू सफर से ही मुकर गया ?
तू है बेबस या मजबूर है ?
क्यूँ पाल रहा यह नासूर है ?
जो ना था तेरा, वह तेरा ना हुआ ,
इसमे तेरा क्या कसूर है ?
-अभिनव शर्मा "दीप"
Intezaar
Ye akelepan ka ehsaas hai,
ya shayad wo paas hai.
Nazron se to gum hai,
par wo meri har saans hai.
Gaya wo yun chod kar,
jaise rootha, chaand raat se.
Ab yun tadpaana he,
shayad use bas raas hai.
Yaadon main he jeeta hai,
aur jeeta har rom rom main.
In yaadon ke karan he to,
uske aane ki aas hai.
-Abhinava Sharma "Deep"
ya shayad wo paas hai.
Nazron se to gum hai,
par wo meri har saans hai.
Gaya wo yun chod kar,
jaise rootha, chaand raat se.
Ab yun tadpaana he,
shayad use bas raas hai.
Yaadon main he jeeta hai,
aur jeeta har rom rom main.
In yaadon ke karan he to,
uske aane ki aas hai.
-Abhinava Sharma "Deep"
Friday, September 21, 2018
तुम
अश्क़ों की स्याही से तेरा नाम लिखते जाते हैं,
फिर ख़ुद ही उस नाम को कई बार मिटाते हैं,
तेरे नाम वाले अश्क़ का फिर जाम बनाते हैं,
और तेरे नाम के जाम का सूरूर चढ़ाते हैं।
एक ही सवाल के बवाल में गोते खाते हैं,
क्या किया जो खोया तुझे, ये समझ ना पाते हैं,
तुझे पाने की चाह में मौत सी ज़िंदगी बिताते हैं,
और एक जिंदगानी तेरे नाम कर जाते हैं।
तुझसे बिछड़ कर, तेरी यादों में खोया पाते हैं,
तड़पते हैं, कहराते हैं, हर याद में बिखर जाते हैं।
फिर उन्हें समेट उनकी छाँव में सुकून पाते हैं,
और यादों की पनाह में तेरा नाम दोहराते हैं।
तेरी तरफ़ जाते हवा के झोकों को ये बताते हैं,
अपनी हर बचकानी भूल पर शर्मिंदगी जताते हैं,
यह पैग़ाम तुझे मिल जाए, बस इतना चाहते हैं,
और आ जाओ वापस, इस उम्मीद पर जिए जाते हैं।
-अभिनव शर्मा “दीप”
Khushfehmiya
Ye aadhe kajal se bhari aankhein,
aur aadhi si muskaan liye,
Zulf ki ek lat ki dhaar se tumne,
Na jaane kitne katleaam kiye.
Chudiyo ke anginat rango se rangti,
Suraj ki kirno se zyada chamakti,
Honto ki laali ko laga kar ke,
Na jaane kitne aashiq neelam kiye.
Kaali safedi ko lapet kar ke,
Nigaaho main aahein samet kar ke,
Har saans se dewaangi barsaate hue,
Har deewane apne naam kiye.
-Abhinava Sharma "Deep"
Thursday, August 23, 2018
ज़िन्दगी
राख से रंगोली बनाते,
टूटे सपनों के घर सजाते,
जीते हैं अनकही आरज़ूओ के साथ,
और फिर अधूरी सी मौत मर जाते।
खोए हुए अतीत का अफ़सोस जताते,
हर पल को जीना भी भूल जाते,
रहते हैं परेशानियों के साथ,
और परेशानियों मैं ही दब कर मर जाते।
नाकाम सी क़िस्मत को आज़माते,
हाथ की लकीरों पर भरोसा जताते,
भाग्य पे अंधा विश्वास कर के,
अन्धों की ज़िन्दगी जी, मर जाते।
पूरी ज़िन्दगी बिता के कुछ पैसे कमाते,
उन पैसों से एक दिन भी ना ख़रीद पाते,
अमीरी-ग़रीबी सब यहीं छोड़ कर के,
नंगे कर के दफ़नाए, जलाए जाते।
इस इंसान को कोई इतना समझाओ,
इस बेवक़ूफ़ियत से कोई इसको बचाओ,
बताओ इसे कोई जीने का अन्दाज़,
कोई दो इसे इज़हार करने की आवाज़,
कोई बताओ हर पल जीने का राज़,
सिखाओ इसे करना मेहनत पे नाज़,
बताओ इसे पैसा कैसा है धोखेबाज़।
बचाओ इसे यूँ रोज़ मरने से,
बचाओ इसे ज़िन्दगी से डरने से,
समझाओ इसे जीने का मक़सद,
बताओ इसे मरने का मतलब,
शायद तुम्हारी बात का असर हो जाए,
हर पल की इसे बस क़दर हो जाए,
मरने से पहले यह कुछ यूँ जिए,
बस एक बार जी कर अमर हो जाए।
-अभिनव शर्मा “दीप”
टूटे सपनों के घर सजाते,
जीते हैं अनकही आरज़ूओ के साथ,
और फिर अधूरी सी मौत मर जाते।
खोए हुए अतीत का अफ़सोस जताते,
हर पल को जीना भी भूल जाते,
रहते हैं परेशानियों के साथ,
और परेशानियों मैं ही दब कर मर जाते।
नाकाम सी क़िस्मत को आज़माते,
हाथ की लकीरों पर भरोसा जताते,
भाग्य पे अंधा विश्वास कर के,
अन्धों की ज़िन्दगी जी, मर जाते।
पूरी ज़िन्दगी बिता के कुछ पैसे कमाते,
उन पैसों से एक दिन भी ना ख़रीद पाते,
अमीरी-ग़रीबी सब यहीं छोड़ कर के,
नंगे कर के दफ़नाए, जलाए जाते।
इस इंसान को कोई इतना समझाओ,
इस बेवक़ूफ़ियत से कोई इसको बचाओ,
बताओ इसे कोई जीने का अन्दाज़,
कोई दो इसे इज़हार करने की आवाज़,
कोई बताओ हर पल जीने का राज़,
सिखाओ इसे करना मेहनत पे नाज़,
बताओ इसे पैसा कैसा है धोखेबाज़।
बचाओ इसे यूँ रोज़ मरने से,
बचाओ इसे ज़िन्दगी से डरने से,
समझाओ इसे जीने का मक़सद,
बताओ इसे मरने का मतलब,
शायद तुम्हारी बात का असर हो जाए,
हर पल की इसे बस क़दर हो जाए,
मरने से पहले यह कुछ यूँ जिए,
बस एक बार जी कर अमर हो जाए।
-अभिनव शर्मा “दीप”
Wednesday, August 22, 2018
ख़ुदा?
कैसा ख़ुदा है, जो जुदा है, या गुमशुदा है,
फ़क़ीर बने फिरती हैं उसकी औलादें,
और वो बदनसीब, सजदों पे फ़िदा हैं।
किसे दिखा है, सुना है, या किसे मिला है,
अधेरों में अंधे उसे खोजते हैं,
और वो बेरुख, ख़यालों में छिपा है।
विनती
शून्यता के पीछे, गुनाहों के भार के नीचे,
खड़ा हूँ इंतेज़ार करता,
तुम्हारे आने का, मुझे बचाने का।
तिरस्कृत हो तन, अपमानित कर मन,
खड़ा हूँ धिक्कार करता,
तुम्हारे जाने का, अपने पछताने का।
पश्चाताप मैं जलता, मलाल मैं मरता,
दिन रात बेज़ार करता,
समय गुज़ार पाने का, अपने मर जाने का।
-अभिनव शर्मा “दीप”
Ik jhalak jo mile teri, ki rooh jaag jaye.
Par itni door yun majboor hain hum,
ki chah kar bhi paa na sake.
Yun baaho main bhar kar le chale wahan,
jahan chah kar bhi koi aur aa na sake.
Bas hum ho aur hamari khamoshiya,
nazrein wo baat kare, jo hont bata na sake.
Kho jaaye hum yun aankhon main tumhari,
ki poori kayenaat bhi dhoondh ke la na sake.
-Abhinava Sharma "Deep"
Par itni door yun majboor hain hum,
ki chah kar bhi paa na sake.
Yun baaho main bhar kar le chale wahan,
jahan chah kar bhi koi aur aa na sake.
Bas hum ho aur hamari khamoshiya,
nazrein wo baat kare, jo hont bata na sake.
Kho jaaye hum yun aankhon main tumhari,
ki poori kayenaat bhi dhoondh ke la na sake.
-Abhinava Sharma "Deep"
Wednesday, August 15, 2018
असली स्वतंत्रता
शहीदों की क़ुरबानी का ये कैसा परिणाम है,
कि ७२ साल बाद भी, आज़ादी एक अपमान है।
हर रोज़ कत्लेआम, हर एक घर शमशान है,
मर गया है इंसान, यह कैसा हिंदुस्तान है।
रोज़ होते हैं बलात्कार, रोज़ एक नारी नीलाम है,
धर्म के नाम पे लड़ना, मरना मारना अब आम है।
पुलिस है नाकाम, और इंसाफ़ पूर्णविराम है,
बिक गया है ईमान, यह कैसा हिंदुस्तान है।
भ्रष्ट है हर नेता, और हर सरकार बैमान है,
अश्लील है राजनीति, व्यर्थ यह संविधान है।
काली हर शाम, और काला आसमान है,
सो रहा है आवाम, यह कैसा हिंदुस्तान है।
याचिका नहीं यह, आज़ादी का फ़रमान है,
मुक्ति इस अनैतिकता से, बस, यही अरमान है।
जागे वो आवाम, जो इस देश का अभिमान है,
करे देश पुनर्निर्माण, जो नाया हिंदुस्तान है।
मुक्त कर अभिशापों से, जो यह काला वर्तमान है,
पराजित कर भ्रष्ट को, और जो अज्ञान है।
मिल कर लड़ साथ, तू भगवान की संतान है,
तू ही है पैग़म्बर, और तू ही हनुमान है।
बदलेगा यह देश, यही तेरा वरदान है,
होगा वो प्रमाण तेरा, जो स्वतंत्र हिंदुस्तान है।
-अभिनव शर्मा “दीप”
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