राख से रंगोली बनाते,
टूटे सपनों के घर सजाते,
जीते हैं अनकही आरज़ूओ के साथ,
और फिर अधूरी सी मौत मर जाते।
खोए हुए अतीत का अफ़सोस जताते,
हर पल को जीना भी भूल जाते,
रहते हैं परेशानियों के साथ,
और परेशानियों मैं ही दब कर मर जाते।
नाकाम सी क़िस्मत को आज़माते,
हाथ की लकीरों पर भरोसा जताते,
भाग्य पे अंधा विश्वास कर के,
अन्धों की ज़िन्दगी जी, मर जाते।
पूरी ज़िन्दगी बिता के कुछ पैसे कमाते,
उन पैसों से एक दिन भी ना ख़रीद पाते,
अमीरी-ग़रीबी सब यहीं छोड़ कर के,
नंगे कर के दफ़नाए, जलाए जाते।
इस इंसान को कोई इतना समझाओ,
इस बेवक़ूफ़ियत से कोई इसको बचाओ,
बताओ इसे कोई जीने का अन्दाज़,
कोई दो इसे इज़हार करने की आवाज़,
कोई बताओ हर पल जीने का राज़,
सिखाओ इसे करना मेहनत पे नाज़,
बताओ इसे पैसा कैसा है धोखेबाज़।
बचाओ इसे यूँ रोज़ मरने से,
बचाओ इसे ज़िन्दगी से डरने से,
समझाओ इसे जीने का मक़सद,
बताओ इसे मरने का मतलब,
शायद तुम्हारी बात का असर हो जाए,
हर पल की इसे बस क़दर हो जाए,
मरने से पहले यह कुछ यूँ जिए,
बस एक बार जी कर अमर हो जाए।
-अभिनव शर्मा “दीप”
Thursday, August 23, 2018
Wednesday, August 22, 2018
ख़ुदा?
कैसा ख़ुदा है, जो जुदा है, या गुमशुदा है,
फ़क़ीर बने फिरती हैं उसकी औलादें,
और वो बदनसीब, सजदों पे फ़िदा हैं।
किसे दिखा है, सुना है, या किसे मिला है,
अधेरों में अंधे उसे खोजते हैं,
और वो बेरुख, ख़यालों में छिपा है।
विनती
शून्यता के पीछे, गुनाहों के भार के नीचे,
खड़ा हूँ इंतेज़ार करता,
तुम्हारे आने का, मुझे बचाने का।
तिरस्कृत हो तन, अपमानित कर मन,
खड़ा हूँ धिक्कार करता,
तुम्हारे जाने का, अपने पछताने का।
पश्चाताप मैं जलता, मलाल मैं मरता,
दिन रात बेज़ार करता,
समय गुज़ार पाने का, अपने मर जाने का।
-अभिनव शर्मा “दीप”
Ik jhalak jo mile teri, ki rooh jaag jaye.
Par itni door yun majboor hain hum,
ki chah kar bhi paa na sake.
Yun baaho main bhar kar le chale wahan,
jahan chah kar bhi koi aur aa na sake.
Bas hum ho aur hamari khamoshiya,
nazrein wo baat kare, jo hont bata na sake.
Kho jaaye hum yun aankhon main tumhari,
ki poori kayenaat bhi dhoondh ke la na sake.
-Abhinava Sharma "Deep"
Par itni door yun majboor hain hum,
ki chah kar bhi paa na sake.
Yun baaho main bhar kar le chale wahan,
jahan chah kar bhi koi aur aa na sake.
Bas hum ho aur hamari khamoshiya,
nazrein wo baat kare, jo hont bata na sake.
Kho jaaye hum yun aankhon main tumhari,
ki poori kayenaat bhi dhoondh ke la na sake.
-Abhinava Sharma "Deep"
Wednesday, August 15, 2018
असली स्वतंत्रता
शहीदों की क़ुरबानी का ये कैसा परिणाम है,
कि ७२ साल बाद भी, आज़ादी एक अपमान है।
हर रोज़ कत्लेआम, हर एक घर शमशान है,
मर गया है इंसान, यह कैसा हिंदुस्तान है।
रोज़ होते हैं बलात्कार, रोज़ एक नारी नीलाम है,
धर्म के नाम पे लड़ना, मरना मारना अब आम है।
पुलिस है नाकाम, और इंसाफ़ पूर्णविराम है,
बिक गया है ईमान, यह कैसा हिंदुस्तान है।
भ्रष्ट है हर नेता, और हर सरकार बैमान है,
अश्लील है राजनीति, व्यर्थ यह संविधान है।
काली हर शाम, और काला आसमान है,
सो रहा है आवाम, यह कैसा हिंदुस्तान है।
याचिका नहीं यह, आज़ादी का फ़रमान है,
मुक्ति इस अनैतिकता से, बस, यही अरमान है।
जागे वो आवाम, जो इस देश का अभिमान है,
करे देश पुनर्निर्माण, जो नाया हिंदुस्तान है।
मुक्त कर अभिशापों से, जो यह काला वर्तमान है,
पराजित कर भ्रष्ट को, और जो अज्ञान है।
मिल कर लड़ साथ, तू भगवान की संतान है,
तू ही है पैग़म्बर, और तू ही हनुमान है।
बदलेगा यह देश, यही तेरा वरदान है,
होगा वो प्रमाण तेरा, जो स्वतंत्र हिंदुस्तान है।
-अभिनव शर्मा “दीप”
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