मार डालो मुझे, छील दो ये जिस्म,
कि बेमतलब है जीना मेरा,
जब तेरा साथ ना रहा,
तो क्या रहा होना या ना होना मेरा |
हम कब तक संभाले ये ग़म-ए-दहर,
ये आंसुओं मे डूबी ज़िंदगी,
कि तेरे बिना तो अब,
बस एक तमाशा सा है रोना मेरा |
अब हम से ना पूछो,
कुछ पाने की खुशी, कुछ खोने का ग़म,
कि तुझे खो कर तो अब,
एक सा है कुछ पाना या खोना मेरा |
भुला दी जब यादें सब,
तो भुला देना ये ज़माना मेरा,
कि जब यादें ना रही,
तो क्या रहा याद आना, या ना आना मेरा |
कुछ ज़हर घोल दो मेरी हवा मे,
कि हर सांस मे थोड़ा सा मर जाऊं,
कि जब जी कर कोई फर्क़ ना पड़ा,
तो क्या फर्क़ लाएगा मर जाना मेरा |
-अभिनव शर्मा "दीप"
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