तसव्वुर में बैठे थे हम उनके,
वो कब उठ कर चल दिये, पता ही ना चला |
इबादत में मांग रहे थे हम उनको,
वो कब झरोखों से बह गए, पता ही ना चला |
इस हकीक़त से हम जूझ रहे थे,
वो कब ख़्वाबों से चले गए, पता ही ना चला |
और इस आग में हम जल रहे थे,
वो कब चिंगारी सा बुझ गए, पता ही ना चला |
-अभिनव शर्मा "दीप"
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