Monday, May 31, 2021

आए जो आज वो फ़िर ख़्वाबों में मिलने, 

तो हमने ख़्वाबों में खुद को मयस्सर कर लिया |


बात उम्र भर साथ रहने की थी,

इक रात को अपना, हमने उम्र भर कर लिया |


हमने सजदों में भी इतना मांगा उन्हें, 

कि मस्जिद को ही अपना घर कर लिया |


शहर में तो उनके आए थे हम बसने, 

पर उनके दर को ही, अपना शहर कर लिया |


आना तो उनका लाज़मी नहीं था मगर, 

इन्तेज़ार उनका हमने सारी उमर कर लिया |


ले कर आए थे हम कयी शिकायतें, 

पर हुनर ने उनके हमें बे-सिपर कर दिया |


अनजानों सा इश्क़ ता-उम्र किया, 

पर उनके नाम को आज मुश्तहर कर दिया |


खो जायेंगे हम भी कभी, शायर की तरह, 

पर नाम के उनको, आब-ए-ख़िज़र कर दिया |


- अभिनव शर्मा "दीप"  


मयस्सर = available

बे-सिपर = unarmed

मुश्तहर = announce

आब-ए-ख़िज़र = lake of immortality



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