है जश्न ये कैसा, क्या जीता है?
कौन से दुर्ग पर विजय पायी है?
अभी तो संग्राम चल रहा है,
अभी कहाँ पूरी हुई लड़ाई है |
हो आनंदित, भूल गए तुम,
किस लक्ष्य से द्वंद छेड़ा था,
किस लिए इस दुनिया ने रुख,
समर की ओर मोड़ा था |
विपत्ति ग्रस्त है विश्व आज भी,
कहाँ मिला इसे समाधान है,
झूल रहा है मौत की गोद में,
मांगता तुम्हारा योगदान है |
है नहीं कोई आखेटक यहां,
पर बन गए सब आखेट हैं,
प्रकृति के समक्ष हार रहे,
पर होते नहीं सचेत हैं |
और कितनी जानें जाने पर,
यह बोध हो पाएगा,
कि जुड़ कर नहीं लड़े अगर,
मानुष्य विलुप्त हो जाएगा |
दृढ़ हो कर डटे रहो,
संगरोधित रहना और सहना है,
कठिन इस वक़्त का हम सब ने,
मिल कर संहार करना है |
भटकते हुए इस जग को,
फिर से सहारा मिल जाएगा,
डूबती इस दुनिया की नाव को,
फिर से किनारा मिल जाएगा |
- अभिनव शर्मा "दीप"
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