Thursday, April 9, 2020

क्या तुमको अकेलेपन का एहसास कराए,
कभी ख़ुद को, ख़ुद से भी अकेला नहीं पाते हम |

सोचते हैं जब, अब किसी की नहीं ज़रुरत,
तो तन्हाई में भी अकेले नहीं रह पाते हम |

मुश्किलें कयी हैं, पर गिनाये तुमको क्या क्या,
उन मुश्किलों का सामना भी तो नहीं कर पाते हम |

कभी अंदर के इंसान को जगाना चाहते हैं,
पर कमबख्त, अंदर भी तो नहीं जा पाते हम |

और इस इश्क़ का भी एहसास, ऐसा कैसा है,
कि इसमे डूबे बिना, जी भी तो नहीं पाते हम |

इस आग के दरिया में कब तैरना मुमकिन था,
पर डूबना भी चाहे, तो साहिल पर आ जाते हम |

बैठ साहिल पर फिर देखते हैं तन्हाई को,
क्योंकि, तन्हाई से भी तो इश्क़ नहीं कर पाते हम |

क्या सुनाए तुमको अपने दर्द की दास्तान,
दर्द को ज़ुबान भी तो नहीं दे पाते हम |

कभी सोचते हैं, कि लिख देंगे आग ईन पन्नों पर,
पर पानी पर अपने नाम की, छलक तक नहीं छोड़ पाते हम |

-अभिनव शर्मा "दीप"

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