Thursday, October 21, 2021

तसव्वुर में बैठे थे हम उनके, 

वो कब उठ कर चल दिये, पता ही ना चला |


इबादत में मांग रहे थे हम उनको,

वो कब झरोखों से बह गए, पता ही ना चला |


स हकीक़त से हम जूझ रहे थे,

वो कब ख़्वाबों से चले गए, पता ही ना चला |


और इस आग में हम जल रहे थे, 

वो कब चिंगारी सा बुझ गए, पता ही ना चला |


-अभिनव शर्मा "दीप" 


Monday, May 31, 2021

आए जो आज वो फ़िर ख़्वाबों में मिलने, 

तो हमने ख़्वाबों में खुद को मयस्सर कर लिया |


बात उम्र भर साथ रहने की थी,

इक रात को अपना, हमने उम्र भर कर लिया |


हमने सजदों में भी इतना मांगा उन्हें, 

कि मस्जिद को ही अपना घर कर लिया |


शहर में तो उनके आए थे हम बसने, 

पर उनके दर को ही, अपना शहर कर लिया |


आना तो उनका लाज़मी नहीं था मगर, 

इन्तेज़ार उनका हमने सारी उमर कर लिया |


ले कर आए थे हम कयी शिकायतें, 

पर हुनर ने उनके हमें बे-सिपर कर दिया |


अनजानों सा इश्क़ ता-उम्र किया, 

पर उनके नाम को आज मुश्तहर कर दिया |


खो जायेंगे हम भी कभी, शायर की तरह, 

पर नाम के उनको, आब-ए-ख़िज़र कर दिया |


- अभिनव शर्मा "दीप"  


मयस्सर = available

बे-सिपर = unarmed

मुश्तहर = announce

आब-ए-ख़िज़र = lake of immortality



Saturday, March 20, 2021

आशियां

अरे आप कहां रुक गए, 
चलते रहिए, 
आने वाले समय में
अपने आशियां बनाइए |
हमें अभी अपनी दरारें 
कुछ और भरनी है,
बिखरे हुए कल की 
कुछ यादें इकट्ठा करनी हैं |
आखिर यादें ही तो हैं 
जो साथ आयेंगी, 
कल हम जिए भी थे, 
यह ही तो बताएंगी |

कहाँ सोच मे पड़ गए, 
सब ठीक ही तो है,
कल करी जो गलतियाँ, 
सब सीख ही तो है |
इनसे सीख कर ही तो, 
आगे चलते जाएंगे,
आगे शायद एक आशियाँ 
और बनाएंगे |
टूट भी गए अगर 
तो क्या ग़म है, 
जिएंगे फिर से, 
क्यूंकि हमसे ही तो हम हैं |

कहाँ अफसोस जताने लग गए, 
अभी बहुत दूर जाना बाकी है, 
मुश्क़िल ही सही, 
यह सफर अभी निभाना बाकी है, 
कि कब मुश्किलें देख 
हम रुक गए थे, 
कब कभी हम, 
लड़ने से पहले झुक गए थे |
पर आप मत रुकिए, 
हम पहुंच जाएंगे,
रास्ता भटक भी गए अगर, 
पर मंज़िल ज़रूर पाएंगे, 
एक शायद आशियां, 
और बनाएंगे |

- अभिनव शर्मा "दीप"