कभी इश्क़ में बहक गए,
तो ज़रा बता देना,
कहीं उसकी नज़रों में क़ैद हुए,
तो ज़मानत दिला देना |
कभी रस्ता भटक गए,
तो राह दिखा देना,
कहीं मंजिल ही भूल गए,
तो अंजाम तक पहुंचा देना |
कभी ख़ुद से रूठ गए,
तो ज़रा मना देना,
कहीं ज़्यादा खुश हुए,
तो हक़ीक़त दिखा देना |
कभी ज़ख्म दिख गए,
तो उनको छिपा देना,
कहीं कुरेदने लगूँ अगर,
तो नमक लगा देना |
कभी आग से जलने लगें,
तो बुझा देना,
कहीं राख बन गए,
तो ज़माने में फैला देना |
- अभिनव शर्मा "दीप"
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