भुज खोल खड़ा विनाश है,
करता तेरी तलाश है,
तुझे संग ले जाने को,
तेरा अस्तित्व मिटाने को।
समा कर इसमे तू नष्ट हो जाएगा,
तेरा समस्त जीवन, ध्वस्त हो जाएगा।
पापों से अपने जब घिरा पाएगा,
ग्लानि कि आग मे ही जल जाएगा।
है खड़ा काल तुझको बुलाता,
तुझे मिटाने कि साज़िश बनाता,
इससे कैसे बच पाएगा तू?
कौन सा छल अपनाएगा तू?
-अभिनव शर्मा “दीप”
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