Monday, April 17, 2023

मार डालो मुझे, छील दो ये जिस्म, 

कि बेमतलब है जीना मेरा, 

जब तेरा साथ ना रहा, 

तो क्या रहा होना या ना होना मेरा |


हम कब तक संभाले ये ग़म-ए-दहर, 

ये आंसुओं मे डूबी ज़िंदगी,

कि तेरे बिना तो अब, 

बस एक तमाशा सा है रोना मेरा |


अब हम से ना पूछो, 

कुछ पाने की खुशी, कुछ खोने का ग़म, 

कि तुझे खो कर तो अब, 

एक सा है कुछ पाना या खोना मेरा |


भुला दी जब यादें सब, 

तो भुला देना ये ज़माना मेरा, 

कि जब यादें ना रही,

तो क्या रहा याद आना, या ना आना मेरा |


कुछ ज़हर घोल दो मेरी हवा मे, 

कि हर सांस मे थोड़ा सा मर जाऊं, 

कि जब जी कर कोई फर्क़ ना पड़ा, 

तो क्या फर्क़ लाएगा मर जाना मेरा |


-अभिनव शर्मा "दीप"