Thursday, October 21, 2021

तसव्वुर में बैठे थे हम उनके, 

वो कब उठ कर चल दिये, पता ही ना चला |


इबादत में मांग रहे थे हम उनको,

वो कब झरोखों से बह गए, पता ही ना चला |


स हकीक़त से हम जूझ रहे थे,

वो कब ख़्वाबों से चले गए, पता ही ना चला |


और इस आग में हम जल रहे थे, 

वो कब चिंगारी सा बुझ गए, पता ही ना चला |


-अभिनव शर्मा "दीप"