आए जो आज वो फ़िर ख़्वाबों में मिलने,
तो हमने ख़्वाबों में खुद को मयस्सर कर लिया |
बात उम्र भर साथ रहने की थी,
इक रात को अपना, हमने उम्र भर कर लिया |
हमने सजदों में भी इतना मांगा उन्हें,
कि मस्जिद को ही अपना घर कर लिया |
शहर में तो उनके आए थे हम बसने,
पर उनके दर को ही, अपना शहर कर लिया |
आना तो उनका लाज़मी नहीं था मगर,
इन्तेज़ार उनका हमने सारी उमर कर लिया |
ले कर आए थे हम कयी शिकायतें,
पर हुनर ने उनके हमें बे-सिपर कर दिया |
अनजानों सा इश्क़ ता-उम्र किया,
पर उनके नाम को आज मुश्तहर कर दिया |
खो जायेंगे हम भी कभी, शायर की तरह,
पर नाम के उनको, आब-ए-ख़िज़र कर दिया |
- अभिनव शर्मा "दीप"
मयस्सर = available
बे-सिपर = unarmed
मुश्तहर = announce
आब-ए-ख़िज़र = lake of immortality