अश्क़ों की स्याही से तेरा नाम लिखते जाते हैं,
फिर ख़ुद ही उस नाम को कई बार मिटाते हैं,
तेरे नाम वाले अश्क़ का फिर जाम बनाते हैं,
और तेरे नाम के जाम का सूरूर चढ़ाते हैं।
एक ही सवाल के बवाल में गोते खाते हैं,
क्या किया जो खोया तुझे, ये समझ ना पाते हैं,
तुझे पाने की चाह में मौत सी ज़िंदगी बिताते हैं,
और एक जिंदगानी तेरे नाम कर जाते हैं।
तुझसे बिछड़ कर, तेरी यादों में खोया पाते हैं,
तड़पते हैं, कहराते हैं, हर याद में बिखर जाते हैं।
फिर उन्हें समेट उनकी छाँव में सुकून पाते हैं,
और यादों की पनाह में तेरा नाम दोहराते हैं।
तेरी तरफ़ जाते हवा के झोकों को ये बताते हैं,
अपनी हर बचकानी भूल पर शर्मिंदगी जताते हैं,
यह पैग़ाम तुझे मिल जाए, बस इतना चाहते हैं,
और आ जाओ वापस, इस उम्मीद पर जिए जाते हैं।
-अभिनव शर्मा “दीप”