और आंखों में कैसी लाली है ?
क्यूँ ख़ुद से उदास है ?
क्यूँ बनता ख़ुद पर गाली है ?
तू है ज़िंदा या मर गया ?
या जीने से पहले गुज़र गया ?
बस एक मंज़र के ना मिलने पर ,
तू सफर से ही मुकर गया ?
तू है बेबस या मजबूर है ?
क्यूँ पाल रहा यह नासूर है ?
जो ना था तेरा, वह तेरा ना हुआ ,
इसमे तेरा क्या कसूर है ?
-अभिनव शर्मा "दीप"