Friday, July 6, 2018

तारक

जब जब जग में अंधेरा अन्याय का छाया है,
एक अनोखा योद्धा तब दुनिया को बचाने आया है।
था वो भीष्म या कर्ण, या था परशुराम का अवतार,
था वो जन्मा महलों में, या था कोठी का परमार।
बहता था वो रगों में, बसता था इरादों के संग,
लाता था नया उजाला, देता था सब को नयी उमंग।

पर इस कलयुग में खो सा गया है वो,
आता नहीं नज़र, जाने कहाँ सोया है वो।
दुःखों से घिरा, जग है बैठा, उसके इंतज़ार में,
उम्मीद करता रोशनी की इस अंधकार में।
पर वो वीर ना जाने कहाँ मिलेगा अब,
चमक से अपनी, रोशन कर सकेगा कब।

ढूँढते हैं उसे रण में मरते वीरों में,
या ढूँढे संसद में लड़ते हीरों में,
ढूँढे उसे फ़िल्मों के कलाकारों में,
या ढूँढे अमीरों के बाज़ारों में,
नहीं मिलता वो किसी देशप्रेमी में,
ना है वो मिला और किसी श्रेणी में।

पर ध्यान से तुम देखो अगर,
देखो यदि अपने अंदर,
मिलेगा वो दीप सा जलता,
तुम्हारे आने का इंतज़ार करता,
इस ज्योति को तुम अपना लो,
इस दीप से मशाल जला लो।

मिलता यह दीप जन जन में,
देखो कभी तुम अंतर्मन में,
बुला कर सब को क़रीब,
मिला कर सब के दीप,
नया सूर्या बना लो,
इस जग को बचा लो।

-अभिनव शर्मा “दीप”