क्षमा, विद्या, तप, तयाग और पूजा
यह सब थे ब्राह्मण के गुण।
अब ब्राह्मण भी लोभ और लालच
मे पड़ कर हो रहा गुम।
खड्ग, बाण, यश, घोर तपस्या,
थे कभी क्षत्रिय के पार्थ।
अब क्षत्रिय भी माया मे पड़ कर,
रह गया केवल नाम मात्र।
खेत, पशु, दान, वाणिज्य व्यापार
बसते थे वैश्य के संग।
अब वैश्य पैसे का बंधक,
बन कर करता जीवन भंग।
नि:स्वार्थ सेवा, मेहनत और श्रम,
थे शूद्र के परम औज़ार।
शूद्र कहलाना अब पसंद नहीं,
पर उठाता आरक्षण का भार।
-अभिनव शर्मा “दीप”